महात्मा गांधी का जीवन केवल भारत की आज़ादी तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने ऐसे कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जिन्होंने न केवल भारतीय समाज बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया। इस लेख में हम गांधीजी के उन अनसुने और अनदेखे फैसलों पर चर्चा करेंगे, जो शायद इतिहास की किताबों में बहुत कम दर्ज हुए हों, लेकिन उनके प्रभाव दूरगामी रहे।
1. अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ पहला सत्याग्रह (1893)
महात्मा गांधी का पहला बड़ा सामाजिक संघर्ष भारत में नहीं, बल्कि दक्षिण अफ्रीका में हुआ। वहाँ उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ सत्याग्रह किया। यह आंदोलन आगे चलकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आधारशिला बना। दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से बाहर फेंके जाने की घटना ने उन्हें अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा दी।
2. अहिंसा को स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनाना
दुनिया में अधिकतर क्रांतियाँ हिंसा के माध्यम से हुई थीं, लेकिन गांधीजी ने इसका बिल्कुल उल्टा रास्ता अपनाया। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह को स्वतंत्रता संग्राम का सबसे मजबूत हथियार बनाया। अगर उन्होंने हिंसा का सहारा लिया होता, तो भारत की आज़ादी का स्वरूप पूरी तरह से अलग हो सकता था।
3. स्वदेशी आंदोलन और विदेशी वस्त्रों की होली (1921)
गांधीजी ने भारतीयों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर स्वदेशी को बढ़ावा दिया। उनका यह फैसला ब्रिटिश अर्थव्यवस्था पर करारा प्रहार था और भारतीय कपड़ा उद्योग को पुनर्जीवित करने की दिशा में बड़ा कदम था।
4. नमक सत्याग्रह (1930)
ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण नमक कानून के खिलाफ गांधीजी ने 240 मील की दांडी यात्रा कर नमक बनाकर कानून तोड़ा। यह एक ऐसा फैसला था जिसने आम भारतीयों को ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह आंदोलन भारत की स्वतंत्रता की दिशा में सबसे महत्वपूर्ण मील का पत्थर बना।
5. अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान
गांधीजी ने दलितों को “हरिजन” नाम देकर समाज में समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने मंदिरों के द्वार सभी के लिए खोलने की वकालत की और अस्पृश्यता को दूर करने के लिए अनगिनत प्रयास किए। उनका यह फैसला जातिगत भेदभाव को खत्म करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था।
6. भारत-पाक विभाजन का विरोध (1947)
गांधीजी ने विभाजन का विरोध किया था और आखिरी समय तक इसके खिलाफ लड़ते रहे। उनका मानना था कि भारत और पाकिस्तान को एक साथ रहना चाहिए, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। यदि विभाजन टल जाता, तो शायद भारत और पाकिस्तान के बीच आज के जैसे कटु संबंध नहीं होते।
7. राष्ट्रपिता की उपाधि को ठुकराना
गांधीजी को “राष्ट्रपिता” की उपाधि दी गई थी, लेकिन उन्होंने कभी इसे औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया। वे हमेशा खुद को मात्र एक जनसेवक मानते थे। उनका यह निर्णय दिखाता है कि वे सत्ता और उपाधियों से परे सिर्फ लोगों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध थे।
8. अंतिम उपवास (1948)
स्वतंत्रता के बाद सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए गांधीजी ने अंतिम उपवास रखा। उनका यह कदम लोगों को हिंसा त्यागने और शांति स्थापित करने के लिए मजबूर करने में सफल रहा। यह फैसला दिखाता है कि वे अपने विचारों पर पूरी तरह अडिग थे।
9. सरकारी पद न लेना
आजादी के बाद गांधीजी को कई उच्च पदों की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने सत्ता से दूरी बनाए रखी। उनका मानना था कि सच्ची सेवा राजनीति से ऊपर होती है और वे केवल समाज सेवा में लगे रहे।
10. ग्राम स्वराज का प्रस्ताव
गांधीजी ने हमेशा गाँवों के विकास पर जोर दिया। उनका मानना था कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है और विकास तभी संभव है जब गाँव आत्मनिर्भर बनेंगे। यदि भारत ने पूरी तरह से गांधीजी के ग्राम स्वराज मॉडल को अपनाया होता, तो आज हमारी अर्थव्यवस्था और प्रशासनिक प्रणाली कुछ अलग होती।
निष्कर्ष
महात्मा गांधी के ये फैसले केवल भारत तक सीमित नहीं थे, बल्कि पूरी दुनिया में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव लाने में सहायक बने। उन्होंने अहिंसा, सत्याग्रह और सामाजिक सुधारों के माध्यम से इतिहास को नई दिशा दी। उनका जीवन और उनके फैसले आज भी प्रासंगिक हैं और हमें सिखाते हैं कि परिवर्तन लाने के लिए हमेशा हिंसा की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि दृढ़ संकल्प और नैतिक साहस ही सबसे बड़ी ताकत होती है।