भारत का सुप्रीम कोर्ट संविधान का अंतिम व्याख्याकार है और इसके फैसले कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में कई महत्वपूर्ण मामलों में पुनर्विचार याचिकाएँ और संविधान संशोधन के जरिये कुछ निर्णय बदले गए हैं। सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को बदला जा सकता है?
हाँ, कुछ विशेष परिस्थितियों में यह संभव है। आइए जानते हैं कि किन तरीकों से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में संशोधन किया जा सकता है।
कैसे बदला जा सकता है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय को बदलने के लिए मुख्यतः तीन कानूनी प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं:
1️⃣ पुनर्विचार याचिका (Review Petition) – अनुच्छेद 137
यदि किसी पक्ष को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में महत्वपूर्ण गलती की है, तो वह पुनर्विचार याचिका (Review Petition) दायर कर सकता है।
📌 महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह याचिका अनुच्छेद 137 के तहत दाखिल की जाती है।
- सुप्रीम कोर्ट अपने निर्णय की समीक्षा कर सकता है, यदि उसमें कोई स्पष्ट कानूनी गलती, गलत तथ्य, या न्यायिक प्रक्रिया में गड़बड़ी पाई जाए।
- यह याचिका निर्णय के 30 दिनों के भीतर दायर करनी होती है।
- पुनर्विचार याचिका ज्यादातर सीमित परिस्थितियों में ही स्वीकार की जाती है।
🔹 हालिया उदाहरण:
- राजीव गांधी हत्याकांड (2022): सुप्रीम कोर्ट ने पहले दोषियों को सजा दी थी, लेकिन पुनर्विचार याचिका और राज्य सरकार की सिफारिश पर कुछ दोषियों को रिहा कर दिया गया।
- सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन बनाम भारत सरकार (2023): सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आर्थिक नीति से जुड़े फैसले की समीक्षा की और कुछ शर्तें जोड़ीं।
2️⃣ सुधारात्मक याचिका (Curative Petition) – अंतिम अवसर
यदि पुनर्विचार याचिका खारिज हो जाए और फिर भी यह महसूस हो कि फैसला अनुचित या गलत तरीके से हुआ है, तो सुधारात्मक याचिका (Curative Petition) दाखिल की जा सकती है।
📌 महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह याचिका सिर्फ उन्हीं जजों के सामने जाती है, जिन्होंने पहले फैसला सुनाया था।
- यह प्रक्रिया अत्यंत दुर्लभ होती है और सिर्फ उन्हीं मामलों में मान्य होती है, जहाँ न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ हो।
🔹 हालिया उदाहरण:
- निर्भया गैंगरेप केस (2020): दोषियों ने दया याचिका खारिज होने के बाद सुधारात्मक याचिका लगाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी खारिज कर दिया।
- आधार कार्ड वैधता मामला (2023): आधार से जुड़ी कुछ शर्तों को सुप्रीम कोर्ट ने पुनः जांचा और नागरिकों की गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए बदलाव किए।
3️⃣ संविधान संशोधन (Constitutional Amendment) – संसद के माध्यम से बदलाव
यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान की व्याख्या से जुड़ा है, तो संसद उसे संविधान संशोधन के माध्यम से बदल सकती है।
📌 महत्वपूर्ण बिंदु:
- यह प्रक्रिया अनुच्छेद 368 के तहत होती है।
- यदि संसद किसी कानून में बदलाव कर देती है, तो उस फैसले का प्रभाव समाप्त हो सकता है।
- लेकिन मूलभूत संरचना (Basic Structure Doctrine) को बदला नहीं जा सकता।
🔹 हालिया उदाहरण:
- ईडब्ल्यूएस आरक्षण (2022): सुप्रीम कोर्ट ने 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) आरक्षण को सही ठहराया, लेकिन इस फैसले को चुनौती देने के लिए संसद ने कुछ नियमों में बदलाव किए।
- अनुच्छेद 370 निरस्तीकरण (2019): सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी गई थी, लेकिन सरकार ने इसे संसद के माध्यम से संवैधानिक रूप से निष्प्रभावी कर दिया।
क्या सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह बदला जा सकता है?
- पूरी तरह से किसी फैसले को बदलना बहुत कठिन होता है, लेकिन पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका, या संविधान संशोधन के माध्यम से संशोधन संभव है।
- सुप्रीम कोर्ट खुद भी अपने कुछ फैसलों को “गलत मिसाल” (Bad Precedent) मानते हुए भविष्य में बदल सकता है।
🔹 वर्तमान परिदृश्य (2025) में ऐसे कई बड़े मामले लंबित हैं, जिनमें पुनर्विचार याचिका और संविधान संशोधन की संभावनाएँ बनी हुई हैं, जैसे:
- यूसीसी (Uniform Civil Code) से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले
- डिजिटल डेटा प्राइवेसी और आधार से जुड़ी पुनर्विचार याचिकाएँ
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम माना जाता है, लेकिन विशेष कानूनी प्रक्रियाओं के तहत इसे बदला जा सकता है। पुनर्विचार याचिका, सुधारात्मक याचिका और संसद के माध्यम से संविधान संशोधन ऐसे तरीके हैं, जिनके जरिए फैसला बदला या संशोधित किया जा सकता है।
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