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सती प्रथा: एक कुप्रथा या समर्पण की पराकाष्ठा?

सती प्रथा
सती प्रथा

कल्पना कीजिए, एक युद्ध में पति वीरगति को प्राप्त कर चुका है, महल में मातम छाया है, और राजमहल की रानी पूरी शान और साहस के साथ चिता की ओर बढ़ रही है। यह केवल एक कथा नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास का वह पक्ष है, जिसने समाज को झकझोर कर रख दिया। सती प्रथा एक ऐसा विषय रहा है, जिसने इतिहास, परंपरा, नारी अधिकार और सामाजिक कुरीतियों पर व्यापक चर्चाएँ जन्म दी हैं। क्या यह स्त्रियों का अटूट समर्पण था, या एक क्रूर परंपरा? आइए, इस विवादास्पद विषय की गहराई में उतरते हैं।

सती प्रथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

सती प्रथा की जड़ें प्राचीन भारतीय इतिहास में देखने को मिलती हैं। यह प्रथा विशेष रूप से राजपूताना, बंगाल और मध्य भारत में प्रचलित थी। इतिहासकारों के अनुसार, यह प्रथा वैदिक काल में अनिवार्य नहीं थी, बल्कि बाद के काल में सामाजिक और सांस्कृतिक दबाव के कारण इसे अपनाया गया।

प्रमुख ऐतिहासिक संदर्भ:

  • राजपूत रानियों का जौहर: जब युद्ध में पति वीरगति को प्राप्त होते थे, तब राजपूत नारियों द्वारा सामूहिक जौहर किया जाता था। रानी पद्मावती का जौहर इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है।
  • राजा राम मोहन राय और सती प्रथा उन्मूलन: 19वीं शताब्दी में राजा राम मोहन राय ने इस कुप्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया और लॉर्ड विलियम बेंटिक के हस्तक्षेप से 1829 में इसे प्रतिबंधित किया गया।
  • बंगाल की क्रूर घटनाएँ: बंगाल में कई मामलों में कम उम्र की विधवाओं को सती बनने के लिए विवश किया गया। यह प्रथा केवल उच्च कुलों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसे धार्मिक मान्यता देकर पूरे समाज में फैला दिया गया।

सती प्रथा: कुप्रथा के तर्क

  1. स्त्री स्वतंत्रता का हनन – यह प्रथा महिलाओं को उनकी स्वेच्छा से जीने का अधिकार नहीं देती थी।
  2. सामाजिक दबाव और जबरन सती कराना – कई ऐतिहासिक संदर्भ बताते हैं कि परिवार और समाज के दबाव में महिलाओं को सती बनाया जाता था।
  3. धार्मिक मान्यता या पुरुष प्रधान समाज का षड्यंत्र? – कुछ विद्वानों का मानना है कि यह प्रथा पुरुष प्रधान समाज की देन थी, जिसमें विधवा स्त्रियों की संपत्ति हड़पने का एक षड्यंत्र था।
  4. अंधविश्वास और रूढ़िवादिता – इसे धार्मिक महिमा मंडन का रूप देकर इसे समाज में मजबूत कर दिया गया।

सती प्रथा: समर्पण की पराकाष्ठा?

कुछ विचारकों के अनुसार, सती प्रथा बलिदान और नारी शक्ति का प्रतीक थी। उनके अनुसार:

  1. पति के प्रति निष्ठा और प्रेम – कुछ महिलाओं ने स्वेच्छा से सती होना चुना, जिसे उनका प्रेम और समर्पण माना गया।
  2. धार्मिक विश्वास – कुछ समुदायों में यह माना जाता था कि सती होने से स्त्री को मोक्ष प्राप्त होता है
  3. वीरता और त्याग – इतिहास में कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ महिलाओं ने सती होकर अपनी आस्था और मर्यादा को सर्वोच्च रखा

सती प्रथा का उन्मूलन और कानूनी प्रतिबंध

  • 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक द्वारा सती निषेध अधिनियम लागू किया गया।
  • 1987 में सती (निवारण) अधिनियम के तहत सती को महिमामंडित करने या उसे बढ़ावा देने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया।
  • आज के समय में, इस प्रथा का कोई औचित्य नहीं रह गया, लेकिन इतिहास में इसकी भूमिका को समझना आवश्यक है।

निष्कर्ष

सती प्रथा एक ऐसा विषय है, जो भारतीय समाज के अतीत की जटिलताओं और रूढ़िवादिता को दर्शाता है। जहाँ एक ओर इसे अत्याचार और सामाजिक अन्याय के रूप में देखा गया, वहीं दूसरी ओर इसे समर्पण और धार्मिक आस्था के रूप में भी देखा गया। आज के आधुनिक युग में यह प्रथा समाप्त हो चुकी है, लेकिन यह इतिहास में एक कड़वी सीख के रूप में हमेशा याद रखी जाएगी।

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